बीजिंग ओलंपिक में एक और पदक की आश लगाए बैठे भारतीय उम्मीद को उस समय जबरदस्त झटका लगा, जब नई भारतीय सनसनी साइना नेहवाल (टेनिस वाली सानिया मिर्जा नहीं) bandminton के एकल मुकाबलों से बाहर हो गयी। अन्तिम चार के मुकाबले में साइना को इंडोनेशिया की मारिया ने २६-२८, १४-२१, १५-२१ से मात दी। इस हार के साथ ही साइना का विजय अभियान थम गया और भारतीय उम्मीद की किरण बुझ गयी। ये आंकडें भले ही हार-जीत का गाथा (मार्च पोस्ट के दौरान सानिया मिर्जा द्वारा साडी न पहनने पर उठे बवाल) लिख गया हो, पर ओलंपिक अभियान में साइना ने सिर्फ़ तीन सेट ही गंवाया.
वैसे बीजिंग ओलंपिक में साइना से आलोचकों को कोई खास उम्मीद नहीं थी। पर जिस तरह उसने प्रारंभिक मुकाबलों में अपने से शीर्ष वरीय खिलाड़ियों को मात दी, उससे भारतीयों की उम्मीद की किरण तो जग ही गयी थी। पर अनुभव और पॉवर की कमी के कारण आखिरकार साइना को हथियार डालने पड़े। पर उसने आसानी से हार नहीं मानी. उसने दमख़म से अपनी चुनौती पेश की, मैदान पर पूरा जोर लगाया और अंततः एक खिलाडी की तरह हार को गले लगाया.
यह उन खिलाड़ियों के लिए एक सबक और प्रेरणा बन सकती है, जिन्होंने बिना लड़े ही मैदान में हथियार डाल दिए। मसलन भारतीय सनसनी सानिया मिर्जा को ही लें। विज्ञापनों और सरकारी अनुदानों की बात करें तो वे इसे पाने वालों में टॉप-१ का खिताब पा सकती है। भारतीयों को उनसे उम्मीदें भी बहुत थी, पर आखिरी समय में हाथ की चोट के कारण सानिया टूर्नामेंट से हट गयी। टेनिस के एकल मुकाबले में तो उम्मीद तो टूटी ही, डबल्स मुकाबलों में भी टिमटिमाती हुई आशा बुझती नज़र आयी.
अब सानिया कुछ दिनों बाद इंडिया लौट आएंगी. एक प्रेस कांफ्रेंस होगा और कैमरे पर अपनी पक्ष पेश करेंगी. और फिर कुछ मिनटों में ही मूवी खत्म हो जायेगी. इसी तरह अन्य खिलाडी भी ऐसा अभिनय करेंगे. और फिर होगा अगले चार साल का अग्रिम वादा. इस वादे को पूरा करने के लिए कई तरह की बाते की जाएंगी. सरकार और जनता से राहत की अपील होगी और खत्म हो जाएगा पदकों का अकाल. पता नहीं क्यों इस तरह के सिलसिले को हम अपना समर्थन देते हैं. और कब तक देते रहेंगे अपना समर्थन...