मंगलवार, 3 नवंबर 2015

ये कैसी असहिष्‍णुता?

यदि आप गूगल में असहिष्‍णुता शब्‍द टाइप करें तो सर्च में 3,57,000 रिजल्‍ट आते हैं. य‍ह साफ दिखाता है कि कैसे महज एक शब्‍द ने देश की सियासी और सांस्‍कृतिक माहौल को हिलाकर रख दिया है.

यह शब्‍द आजकल हर किसी के जबान पर है. राजनेता हो या अभिनेता, फिल्‍मकार या फिर लेखक...ऐसी लंबी फेह‍रिश्‍त हो रही है जो अपने मुताबिक असहिष्‍णुता का व्‍याख्‍या कर रहा है. यह जानते हुए भी महज इस शब्‍द की वजह से देश का तानाबाना छिन्‍न-भिन्‍न हो रहा है. दुश्‍मनों को हम पर ऊंगलियां उठाने का मौका मिल रहा है. पड़ोसी मुल्‍कों को दखल देने की वजह मिल रही है. क्‍या कोई भी भारतीय यह चाहेगा कि देश की एकता और अखंडता इस कदर टूटकर खत्‍म हो जाए?

ये कैसा हक?
ये माना कि लोकतंत्र में आपको अपनी आवाज उठाने की आजादी है. आपको विरोध जताने की स्‍वतंत्रता है. आपको हक है कि आप चाहें किसी भी तरह मनमर्जी से जिंदगी का लुत्‍फ उठाएं. लेकिन क्‍या लोकतंत्र आपको यह आजादी देता है कि आप अपनी बातों से समाज में टकराहट पैदा करें? भाइयों को एक दूजे का दुश्‍मन बनाएं? केवल चंद वोटों के लिए दो समुदायों के बीच लंबी दीवार खड़ी कर दें? सत्‍ता पाने के लिए मारकाट जैसा माहौल पैदा कर दें?

कोई भी समाज यह अधिकार नहीं देता कि आप कानून हाथ में लेकर किसी की जान ले लें. इसका मतलब यह भी नहीं है कि यदि किसी एक शख्‍स ने गलती की है तो पूरे समाज या फिर संगठन को जिम्‍मेदार ठहराएं?

ये कैसा विरोध?
उदाहरण गिनाएं तो लंबी सीरीज नजर आती है. बस एक नजर उठाकर बिहार के सियासी माहौल और पुरस्‍कार लौटाने को लेकर हो रहे विवादों पर दें. पुरस्‍कार और सम्‍मान लौटाने वालों के बीच होड़ चल रही है. रोजाना कोई न कोई सम्‍मान लौटाकर खबरों की सुर्खियां बन रहा है. ये माना कि आप सम्‍मान लौटाकर विरोध जता सकते हैं. लेकिन जिस उपलब्धि को लेकर आपको सम्‍मान मिला, क्‍या आप उसे लौटाकर उसकी तौहीन नहीं कर रहे हैं.?

कैसे करें यकीन?
बिहार चुनाव में जिस कदर राजनेता स्‍तरहीन और गंदी जुबानी जंग में उलझ पड़े हैं, उसे सुनकर भी शर्म आती है. यकीन नहीं होता कि इन प्रतिनिधियों को हमने ही चुना है. यही हमारे नीति निर्माता है. इसी के हवाले हम अपनी और आने वाली पीढ़ी की तकदीर हवाले कर रहे हैं. बस खुद पर कोफ्त होती है कि आखिर हम कैसे खुद पर यकीन भरोसा दिलाएं कि सबकुछ ठीक हो जाएगा.