रविवार, 26 अप्रैल 2009

...दरवाजा कभी खुले या न खुले

आजकल हर कोई भारतीय लोकतंत्र के महापर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। राजनीतिक पार्टियों से लेकर मीडिया में बस यही चर्चा है कि आखिर किसके सिर पर पीएम पद की ताजपोशी होगी। आखिर कौन है जो कांटों का ताज झटकने में कामयाब होगा। ऐसा लगता है कि इस बार चूके तो फिर न जाने किस्मत का दरवाजा फिर कभी खुले या न खुले। जोया अख्तर की 'लक बाय चांस ’ भले ही कुछ खास नहीं चली हो, पर 'पीएम बाई चांस ’ बनने की जो होड़ शुरू हुई....जो अब खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है।

यूं तो हर नेताओं के दिल में हुकहुकी है कि इस बार संप्रग और राजग में कोई भी गठबंधन २७२ के जादुई आंकड़े को स्पर्श नहीं कर पाएगा। यहां तक कि कांग्रेस या भाजपा का तो आप नाम ही भूल जाइए। पर अपना यह नाजुक दिल है न, कुछ तो मानता ही नहीं। दिल कहता है कि नहीं इस बार तो मैं ही प्रधानमंत्री बनूंगा। ज्योतिषी और भविष्यवक्ताओं की इस बार तो चांदी ही चांदी है। चैनल से लेकर हर अखबार इनकी बातों की अटे पड़े हैं कि इस बार कौन पीएम बनेगा। कुछ ज्योतिषियों ने यहां तक कहा कि इस बार शरद पवार इस बार प्रधानमंत्री की रेस में सबसे आगे है। कांग्रेस से विद्रोह कर अलग पार्टी बनाने वाले पवार अब उसी की साथ मिलकर महाराष्टï्र में सत्ता की मलाई खा रहे हैं। पहले केंद्र में कृषि मंत्री बने और फिर बीसीसीआई का कर्ताधर्ता बनने में तनिक भी देर नहीं किए। सब कुछ ठीक रहा तो २०११ में वे आईसीसी का चेयरमैन भी बन ही जाएंगे। पर क्या किस्मत इनको पीएम की कुर्सी तक ले जाएगी?

इस बीच भाजपा में पीएम इन वेटिंग की लिस्ट में एक और नाम जोर-शोर से हलचल मचाने के लिए बेताब है। यह कोई नहीं गोधरा दंगे से कुख्यात और गुजरात में सुशासन के लिए विख्यात रहे नरेंद्र मोदी साहब हैं। भाजपा में पीएम पद के लिए उनका नाम बहुत उछाला जा रहा है। दूसरे कतार के नेताओं का कहना है कि मोदी इस पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं। पर यह बात आडवाणी के समकक्ष माने वाले मुरली मनोहर जोशी और उनके समर्थकों को रास नहीं आ रही है। कभी एकता यात्रा से आडवाणी की रथ यात्रा को चुनौती देने वाले जोशी अपनी गाड़ी को ही पंचर कर बैठे हैं। हालात इतनी बुरी है कि पिछले लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से अपनी सीट तक गंवा बैठे।

ये तो बात हुई दो नेताओं की। पर यदि इस लिस्ट में और नामों पर दृष्टिï डाला जाए तो हर पार्टी में कम से कम एक पीएम के प्रत्याशी जरूर हैं। राजद में लालू प्रसाद यादव, बसपा में मायावती, सपा में मुलायम सिंह यादव, बीजद में नवीन पटनायक, लेफ्ट में प्रकाश करात, जद-सेकुलर में एचडी देवगौड़ा और फिर हर दल में छुपे हुए न जाने कितने उम्मीदवार। अर्थात कुर्सी एक और उस पर बैठने वाले अनेक। यदि चुनाव बाद सभी लोग एक ही कुर्सी पर बैठे तो कुर्सी का टूटना तो निश्चित ही है ना। तब न यह कुर्सी बचेगी और न ही इन पर बैठने वाले ये नेतागण। हां, इससे जरूर भारत माता की आत्मा रो पड़ेगी......

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मुस्कुराया विजय...


खुशियां किसी खास वक्त की मोहताज नहीं होती है। सच में दिल में उमंग-तरंग हो तो फिर चेहरे पर मुस्कान खुद-ब-दुख दस्तक देती है। इस मुस्कान का कायल सिर्फ हमारा दिल नहीं होता, बल्कि आसपास भी यह अपनी सुगंध छोड़ देता है। पर, यह खुशी उस मासूम की है जिसने लड़कपन में अभी कदम ही रखा और मौत ने उससे दोस्ती करनी चाही। क्या हाल हुआ होगा उस मासूम का? उसका दिल कैसे तड़पता होगा? आंसू और मुस्कान में जंग छिड़ गई। पर यह जंग न तो किसी परमाणु हथियार से हुआ और न ही किसी आत्मघाती आतंकी हमले से। अंत में मुस्कान की जीत हुई और आंसू को हथियार डालना पड़ा।


यह कहानी है नौ साल के मासूम विजय की। नाम-विजय। उम्र-नौ साल। मरीज-गंभीर बीमारी थेलेसेमिया का। आखिरी इच्छा-एक बार आईपीएस वर्दी पहनने की। दरवाजे पर मौत ने जोर से कुंडी खटखटाया, पर उसने जिंदगी से हार नहीं मानी और चल पड़ा एक खुशी का बागवां लूटने। खुशकिस्मत कहिए इस यात्रा में उसे ऐसे कई मुसाफिर मिले जो आज भी खुशी व मुस्कान का दीप जला रहे हैं।


अहमदाबाद के कालुपुर-नरोड़ा रोड पर स्थित पारसी के भ_ïा चाली में रहने वाला नौ वर्षीय विजय खानैया थेलेसेमिया बीमारी से ग्रस्त है। डॉक्टर ने परिजनों को बताया है कि विजय अब बस चंद दिनों का मेहमान है। मौत से जूझ रहे विजय का सपना था कि वह आईपीएस का वर्दी पहने। इसके लिए उसने बस कुछ और साल अपने लिए मौत से मांगे। खैर मासूमियत और जिजीविषा कहां हार मानने वाली थी।


जिदंगी ने एक अलग ही राह चुनी। उसने अपने सपनों की पंखुरिया को हवा में उड़ा दिया और फिर न जाने यह कैसे हर जहां को महका गई। और फिर देर ही क्या, कुछ स्वप्निलों के सहयोग से उसका यह सपना भी पूरा हुआ। एक पारंपरिक तरीके से पुलिस कमिश्नर अतुल ने विजय को एक आईपीएस अधिकारी होने का दर्जा दिया। बकायदा विजय ने अन्य मकहमे का निरीक्षण किया और पेट्रोलिंग पर भी गए। जिस दुकान से यूनिफॉर्म खरीदा गया, उस दुकानदार ने पैसा लेने से साफ मना कर दिया।


आज विजय एक नए मुस्कान के साथ मौत को एक नया पैगाम दे रहा है। भले ही चंद दिनों में वह भगवान का प्यारा हो जाए। पर उसकी यह जिजीविषा और मासूमियत का हर कोई कायल होगा। सच में सपने कभी मरते नहीं.....मुस्कान कभी खत्म नहीं होता...।

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

''पुष्प की अभिलाषा''

चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूंथा जाऊँ.

चाह नहीं प्रेमी माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ .

चाह नहीं सम्राटों के शव पर,
हे हरि डाला जाऊँ.

चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं .

मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक.

मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक. ( माखनलाल चतुर्वेदी )

बचपन में यह कविता पढ़ी थी. कविता की हर लफ्ज़ एक अलग भाव के साथ आज भी दिल में हिलकोरें मारती है. सहसा आज फिर सौभाग्यवश यह मेरी नज़रों के सामने अवतरित हुई. दिल खुशियों से बाग़-बाग़ हो गया. खुद को रोक नहीं पाया और इसे पोस्ट करने के लिए ऊँगलियाँ कीबोर्ड पर खुद-बखुद चलने लगी. तो फिर देर किस बात की, 'पुष्प की अभिलाषा' के साथ-साथ इसकी महक से खुद को आनंदित करें..