गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मुस्कुराया विजय...


खुशियां किसी खास वक्त की मोहताज नहीं होती है। सच में दिल में उमंग-तरंग हो तो फिर चेहरे पर मुस्कान खुद-ब-दुख दस्तक देती है। इस मुस्कान का कायल सिर्फ हमारा दिल नहीं होता, बल्कि आसपास भी यह अपनी सुगंध छोड़ देता है। पर, यह खुशी उस मासूम की है जिसने लड़कपन में अभी कदम ही रखा और मौत ने उससे दोस्ती करनी चाही। क्या हाल हुआ होगा उस मासूम का? उसका दिल कैसे तड़पता होगा? आंसू और मुस्कान में जंग छिड़ गई। पर यह जंग न तो किसी परमाणु हथियार से हुआ और न ही किसी आत्मघाती आतंकी हमले से। अंत में मुस्कान की जीत हुई और आंसू को हथियार डालना पड़ा।


यह कहानी है नौ साल के मासूम विजय की। नाम-विजय। उम्र-नौ साल। मरीज-गंभीर बीमारी थेलेसेमिया का। आखिरी इच्छा-एक बार आईपीएस वर्दी पहनने की। दरवाजे पर मौत ने जोर से कुंडी खटखटाया, पर उसने जिंदगी से हार नहीं मानी और चल पड़ा एक खुशी का बागवां लूटने। खुशकिस्मत कहिए इस यात्रा में उसे ऐसे कई मुसाफिर मिले जो आज भी खुशी व मुस्कान का दीप जला रहे हैं।


अहमदाबाद के कालुपुर-नरोड़ा रोड पर स्थित पारसी के भ_ïा चाली में रहने वाला नौ वर्षीय विजय खानैया थेलेसेमिया बीमारी से ग्रस्त है। डॉक्टर ने परिजनों को बताया है कि विजय अब बस चंद दिनों का मेहमान है। मौत से जूझ रहे विजय का सपना था कि वह आईपीएस का वर्दी पहने। इसके लिए उसने बस कुछ और साल अपने लिए मौत से मांगे। खैर मासूमियत और जिजीविषा कहां हार मानने वाली थी।


जिदंगी ने एक अलग ही राह चुनी। उसने अपने सपनों की पंखुरिया को हवा में उड़ा दिया और फिर न जाने यह कैसे हर जहां को महका गई। और फिर देर ही क्या, कुछ स्वप्निलों के सहयोग से उसका यह सपना भी पूरा हुआ। एक पारंपरिक तरीके से पुलिस कमिश्नर अतुल ने विजय को एक आईपीएस अधिकारी होने का दर्जा दिया। बकायदा विजय ने अन्य मकहमे का निरीक्षण किया और पेट्रोलिंग पर भी गए। जिस दुकान से यूनिफॉर्म खरीदा गया, उस दुकानदार ने पैसा लेने से साफ मना कर दिया।


आज विजय एक नए मुस्कान के साथ मौत को एक नया पैगाम दे रहा है। भले ही चंद दिनों में वह भगवान का प्यारा हो जाए। पर उसकी यह जिजीविषा और मासूमियत का हर कोई कायल होगा। सच में सपने कभी मरते नहीं.....मुस्कान कभी खत्म नहीं होता...।

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