शनिवार, 31 जनवरी 2009

वाह यूकी......, तेरा क्या कहना!

वाह यूकी, तूने तो कमाल कर दिया। ऑस्ट्रेलियन ओपन में जूनियर वर्ग का एकल खिताब जीतकर सचमुच तूने एक नया इतिहास रचा। मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के 'कॉमन मैन ’ के चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान देने के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। मेलबर्न के इस नए प्रिंस को हर भारतीय का सलाम। महज १६ साल की उम्र में ग्रैंड स्लैम खिताब पर कब्जा जमाना किसी हैरतअंगेज कारनामा से तो कम नहीं है।
एक बात और कि महिला एकल मुकाबलों में टेनिस सनसनी सानिया दूसरे दौर में ही खामोश हो गई, पर सानिया भूपति के साथ मिक्स्ड मुकाबले के फाइनल में दस्तक देकर अपनी छाप छोडऩे में कामयाब रही। लिएंडर पेस और महेश भूपति भी अपने जोड़ीदारों के साथ आगे बढऩे में सफल रहे। भले ही भूपति-नोल्स की जोड़ी डबल्स फाइनल मुकावला गंवा बैठी, पर यह कारनामा प्रशंसा बटोरने के लिए काफी है। पर सबसे अधिक यूकी की कलात्मक टेनिस शैली ने सभी का मन मोह लिया। और जब चारों ओर से यूकी पर बधाई की वर्षा हो रही है तो इसमें किसी को अचरज करने की बात ही क्या।
आज यूकी की खबर हर वेबसाइट, टेलीविजन और अखबार पर प्रमुखता से जगह पा रही है। पर क्या ये मीडिया के रहनुमा जरा गौर फरमाएंगे कि यही यूकी जब ऑस्ट्रेलियन ओपन में अपना जौहर दिखा रहे थे, तो टेनिस की खबरों में यूकी बस एक-दो लाइन में ही नीचे पड़े रहते थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि भांबरी परिवार टेनिस से गहराई से जुड़ा रहा है। आज भी यूकी की बहनें टेनिस खेल रही है। भले ही सानिया के आगे भांबरी बहनें मीडिया और कॉरपोरेट जगत में उतना एक्सपोज नहीं पा रही है, पर क्या किसी खिलाड़ी की प्रतिभा सिर्फ मीडिया में ही चर्चा से झलकती है? अभी भी हमारे खेल रहनुमाओं को समझने की जरूरत है कि आखिर कब तक हमलोग हजारों 'यूकी ’ को भूलेते रहेंगे। आज जरूरत है कि खो-खो, कबड्डी, ताइक्वांडो, कुश्ती और भारोत्तोलन जैसे उपेक्षित खेलों में 'यूकी ’ को खोजा जाए।

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

’छुक-छुक चलती ट्रेन टू मैरिज ’

मेरे एक मित्र हैं। उम्र ३० की हो चुकी है। जब उनसे कोई उनकी उम्र के बारे में पूछता तो वे लड़कियों की तरह शरमाते हैं। बस वैसे ही जैसे अपनी लाजवंती छूते ही सिकुड़ जाती है। पर वे लाजवंती की तरह रूठते नहीं है, सदा हंसते-मुस्कराते रहते हैं। जिंदादिली उनमें साफ झलकती है और इसलिए वे सभी लोगों के दिल के करीब हैं। पर आजकल महाशय कुछ ज्यादा ही खिले-खिले नजर आते हैं। हो भी क्यों ना! उनकी शादी जो होने वाली है। पर पता नहीं क्यों, भाईसाहब के चेहरे पर शादी का नाम आते ही लज्जा से सिकुड़ी हुई किसी नवयुवती की लालिमा उभर आती है।
उनकी शादी की कहानी किसी पैसेंजर ट्रेन से कम नहीं है। भले ही वे हीरो होंडा स्प्लेंडर प्लस पर सवारी करते हों और नोकिया का अत्याधुनिक मोबाइल रखते हों। पर 'ट्रेन टू मैरिज ’ की रफ्तार पुराने जमाने की खटारा मोटरसाइकिल से कम नहीं है। उनकी यह गाड़ी छुक-छुक करते हुए अभी गंतव्य स्टेशन पर नहीं पहुंची है। 'ट्रेन टू मैरिज ’ अभी भी पटरी पर चल ही रही है। भाई साहब की जुलाई में शादी की तारीख तय हुई। तो अगस्त महीने में वे लड़की देखने पहुंचे। पर पहली ही मुलाकात में वे उन्हें अपना दिल दे बैठे। अब बता रहे हैं कि सितंबर में रिसेप्शन होगा। पर शादी की तारीख अभी भी तय नहीं हुई है।
वैसे उनका विवाह करने का इरादा तो किसी बुलडोजर के इरादे से कम नहीं है। कभी ऐसा भी दौर था जब वे शादी के नाम पर बिदक जाते थे। बताते थे कि अरे भाई जो कुंआरे रहने में मजा है वो भला शादी के करने पर कहां। मतलब साफ था कि शादी करने पर तो सजा ही मिलती है और कुंआरों की मौजा-मौजा ही होती है। पर अब तो पूछिए ही मत!
रोजाना फोन पर वे घंटों बातें होती है उनकी। जुंबा पर उनका नाम आते ही वे थोड़ा शरमा जाते हैं। किसका नाम अब ये हमसे पूछिए मत। चेहरे पर थोड़ा सा मुस्कान लाएंगे और कहेंगे अरे भाई अब तो मैं भी कुंआरों की लिस्ट से अपना नाम कटवा रहा हूं। बस, इस मौके को भुनाने तो दो। तो भला मैं क्यों आपत्ति करूंगा। शादी उनकी होगी तो मुझे ढेर सारी मिठाई खाने को तो मिलेगी ही। वैसे मैं मिठाई का हूं बड़ा शौकीन। उनकी शादी में मैं जमकर मिठाई खाऊंगा। पर यह 2वाहिश सिर्फ मेरी ही नहीं है। बल्कि हमारे अन्य साथियों की भी है। खासकर मेरे उस राजस्थानी भैया की बहुत है। अब तो हमारी मित्र मंडली को शादी की तारीख का इंतजार है।