मेरे एक मित्र हैं। उम्र ३० की हो चुकी है। जब उनसे कोई उनकी उम्र के बारे में पूछता तो वे लड़कियों की तरह शरमाते हैं। बस वैसे ही जैसे अपनी लाजवंती छूते ही सिकुड़ जाती है। पर वे लाजवंती की तरह रूठते नहीं है, सदा हंसते-मुस्कराते रहते हैं। जिंदादिली उनमें साफ झलकती है और इसलिए वे सभी लोगों के दिल के करीब हैं। पर आजकल महाशय कुछ ज्यादा ही खिले-खिले नजर आते हैं। हो भी क्यों ना! उनकी शादी जो होने वाली है। पर पता नहीं क्यों, भाईसाहब के चेहरे पर शादी का नाम आते ही लज्जा से सिकुड़ी हुई किसी नवयुवती की लालिमा उभर आती है।
उनकी शादी की कहानी किसी पैसेंजर ट्रेन से कम नहीं है। भले ही वे हीरो होंडा स्प्लेंडर प्लस पर सवारी करते हों और नोकिया का अत्याधुनिक मोबाइल रखते हों। पर 'ट्रेन टू मैरिज ’ की रफ्तार पुराने जमाने की खटारा मोटरसाइकिल से कम नहीं है। उनकी यह गाड़ी छुक-छुक करते हुए अभी गंतव्य स्टेशन पर नहीं पहुंची है। 'ट्रेन टू मैरिज ’ अभी भी पटरी पर चल ही रही है। भाई साहब की जुलाई में शादी की तारीख तय हुई। तो अगस्त महीने में वे लड़की देखने पहुंचे। पर पहली ही मुलाकात में वे उन्हें अपना दिल दे बैठे। अब बता रहे हैं कि सितंबर में रिसेप्शन होगा। पर शादी की तारीख अभी भी तय नहीं हुई है।
वैसे उनका विवाह करने का इरादा तो किसी बुलडोजर के इरादे से कम नहीं है। कभी ऐसा भी दौर था जब वे शादी के नाम पर बिदक जाते थे। बताते थे कि अरे भाई जो कुंआरे रहने में मजा है वो भला शादी के करने पर कहां। मतलब साफ था कि शादी करने पर तो सजा ही मिलती है और कुंआरों की मौजा-मौजा ही होती है। पर अब तो पूछिए ही मत!
रोजाना फोन पर वे घंटों बातें होती है उनकी। जुंबा पर उनका नाम आते ही वे थोड़ा शरमा जाते हैं। किसका नाम अब ये हमसे पूछिए मत। चेहरे पर थोड़ा सा मुस्कान लाएंगे और कहेंगे अरे भाई अब तो मैं भी कुंआरों की लिस्ट से अपना नाम कटवा रहा हूं। बस, इस मौके को भुनाने तो दो। तो भला मैं क्यों आपत्ति करूंगा। शादी उनकी होगी तो मुझे ढेर सारी मिठाई खाने को तो मिलेगी ही। वैसे मैं मिठाई का हूं बड़ा शौकीन। उनकी शादी में मैं जमकर मिठाई खाऊंगा। पर यह 2वाहिश सिर्फ मेरी ही नहीं है। बल्कि हमारे अन्य साथियों की भी है। खासकर मेरे उस राजस्थानी भैया की बहुत है। अब तो हमारी मित्र मंडली को शादी की तारीख का इंतजार है।
2 टिप्पणियां:
सही है आपने अपने दोस्त की किस्सा - ऐ - मैरिज़ बहुत सही लिखा ...मजा आ गया भाई ....ऐसा ही होता है आपस में ....बहुत ही बढ़िया लगा ...
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बेहद मस्ती में और खुश होकर लिखा है..
अच्छा लगा पढना..
अपने मित्र को मेरी शुभकामनाएं देना ना भूलें.. :)
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