गुरुवार, 9 जनवरी 2014

लंबी जुदाई का दर्द

आज लंबे अरसे बाद मैंने अचानक ब्लॉग देखा तो दिल सन्न से रह गया। ये क्या किया मैंने!

'अपना पराया' से एक साल की जुदाई का दर्द मैंने खुद के दिल में छुपाए रखा। पता नहीं मैंने ऐसा क्यों किया। लगता है शायद मैं खुद से दूर चला गया था। यही वजह रही कि मेरा ब्लॉग भी मुझसे खफा खफा हो गया।

पर अब ऐसा नहीं होगा। मैं जानता हूं कि निराशा, नाकामी तो जिंदगी का हिस्सा है। यदि ये सारी चीजें हमारी जिंदगी में न हों तो फिर कैसे खुशी, सफलता और प्रेम की अहमियत समझ पाएंगे।

पिछले एक साल की बात करूं तो जिंदगी बहुत कुछ बदल गई है।

अब मेरा प्यारा बेटा आदित्य बड़ा हो गया है। स्कूल जाने लगा है। हालांकि उसकी छोटी-छोटी गलतियां अभी भी हंसाती है। उसकी शिकायतों का पु‌लिंदा बढ़ रहा है, साथ में फरमाइशों का पिटारा भी।

खुद को उम्र में छोटा मानना आदि को अच्छा नहीं लगता। वह जल्द से जल्द बड़ा होना चाहता है। ये उसकी नादानी कहें या फिर बचपना, वह हर चीज सीखना चाहता है।

मां-बाबूजी से दूर रहना दिल को बड़ा खलता है लेकिन क्या करूं। उनलोगों को याद कर या फिर फोन कर खुद को उनके करीब ले जाता हूं।

वैसे कहने को बहुत कुछ है। रात के 1.48 बज रहे हैं।

अब घर जाना है और फिर डीडी न्यूज में इंटरव्यू देने जाना भी है। देखता हूं इसका क्या नतीजा आता है।

बस खुद से एक वादा करता हूं कि....।