रविवार, 26 दिसंबर 2010

ख्वाब को जिंदा करने की कोशिश

शायद वह सुनहरा दौर खत्म हो गया! जब भी हम या आप पीछे मुड़कर कुछ देखने की कोशिश करते हैं तो हमें कभी पथरीला राह दिखता है अथवा बंजर जमीन का टुकड़ा। एक अरसा बीत गया कि जब हम उन हरी-भरी भूमि पर खूबसूरत ख्वाब बुना करते थे। सपनों की दुनिया में सैर करने का तो अपना ही मजा है। बिना रोक-टोक के हर उस पल का जीवंत मजा लेना, इसका मुकाबला भला कौन कर सकता है। पर, यह क्या मंद-मंद समीर के अनचाहे झोंके ने उस सपने के शीशमहल को चकनाचूर कर दिया!!!!

पता नहीं कैसे, जब नींद खुली तब तक सब कुछ तहस-नहस हो चुका था। सामने वही हकीकत का पाजामा, जिसे पहनकर मैं अपने बिस्तर पर थका मांदा लेटा हुआ था। शायद यही मेरी नीयति थी और मैं अधूरे ख्वाब का एक हिस्सा। कहने को तो यूं कई सारे बहाने गिना सकता हूं। मसलन, भाई मेरे पास समय नहीं है कि इस सपने को पूरा करने के लिए। क्या बस चंद लफ्ज बयां कर देने से ही आपकी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? क्या आपका अस्तित्व लुप्त हो जाता है। नहीं न, तो फिर आप अपनी आंखें कब खोलिएगा। जरा, अपनी पलकें को इधर-उधर घुमाना तो शुरू कीजिए।

अब हमें किसी ने नहीं डरना है। अपने ख्वाब को हकीकत की हरी-भरी धरा पर इसे फिर से बोना है। मेरा सपना है कि इस नदी को फिर से जिंदा करूं, जो मेरे आलस और उदासी के कारण मरने को चली थी। मैंने कभी खुद से वादा किया था कि मैं अपने ब्लॉग पर दिल और दुनिया की बातें लिखूंगा। इस जज्बात में आज से नए रंग भरने की कोशिश कर रहा हूं। मेरा मुझसे वादा है कि अपने इस ख्वाब में रंग-बिरंगे रंग डालकर इसे नायाब और बेहतरीन रूप दूंगा।