बुधवार, 9 मई 2012

वक्त ने किया क्या हसीं सितम...

वक्त ने किया क्या हसीं सितम,
तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम..

बेकरार दिल, इस तरह मिले,
जिस तरह कभी हम जुदा न थे..
तुम भी खो गए, हम भी खो गए..
एक राह पर चल के दो कदम..

वक्त ने किया क्या हसीं सितम,
तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम..

जाएंगे कहां, सूझता नहीं..
चल पड़े मगर, रास्ता नहीं..
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं..
बुन रहे हैं दिन, ख्वाब दम-बदम

वक्त ने किया क्या हसीं सितम,
तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम..

यह खूबसूरत नगमा 'कागज के फूल' का है जिसे मशहूर शायर कैफी आजमी ने लिखा था। आजमी साहब हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके दर्दभरे अल्फाज हमारे दिल में हमेशा मौजूद रहेंगे

मंगलवार, 1 मई 2012

इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन कौन?

एक सवाल जो हर लम्हा मन को कचोटता है...आ‌खिर इंसान का दुश्मन कौन है? कहने को तो इंसान खुद को खुदा का सबसे खूबसूरत तोहफा मानता है। पर क्या सच में यह खुद की प्रशंसा नहीं है? हो सकता है कि हर किसी को बेवकूफ मानने वाले इंसान की एक और यह चालाकी हो?

कहीं भी दूर जाने की जरूरत नहीं...बस मन के दर्पण में झांकिए इस अनसुलझे सवाल का जवाब मिल जाएगा। वैसे भी हर इंसान में कुछ ऐसी बुराइयां जरूर होती है जो उसके तन और मन को कचोटती है। इन इंसानों की फे‌हरिश्तों में एक मैं भी हो सकता हूं और इसमें चौंकने की भी जरूरत नहीं।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। खुदा ने जब इस खूबसूरत जन्नत को बनाया होगा, उनके दिमाग में ऐसी दुनिया को सोच होगी जहां हर फूल अपनी मर्जी से खिलेगा। उसकी खूशबू हर किसी के मन को पवित्र करेगी। दुख की बात तो बस यह है कि तमाम बुराइयां हमारे खून में घुल चुकी है और चाहकर भी हम इसे खत्म नहीं कर पा रहे हैं।

किसी शायर ने सच ही कहा है कि शरीर में दौड़े तो पानी और सड़क पर बहे तो खून...। यह कुछ ऐसी हकीकत है जिसे हम या आप भले ही न माने तो पर यह कटु सच्चाई है।