रविवार, 15 मार्च 2009

बिलखता पाक अवाम

आर्मी और अमेरिका। इस दो 'अ ’ ने पाकिस्तानी अवाम को हर बार नुकसान ही पहुंचाया है। पर अब तीसरे 'अ ’ (दुर्भाग्य से) आसिफ अली जरदारी सब पर भारी पर रहे हैं। कभी 'मिस्टर टेन परसेंट ’ (हर टेंडर में दलाली) के नाम से कुख्यात रहे जरदारी ने बेनजीर की मौत के बाद राष्टï्रपति का पद ग्रहण किया तो आम लोगों के साथ अंतरराष्टï्रीय बिरादरी में भी आशा की किरण दिखाई दी। पर यह सब इतना जल्दी खत्म हो जाएगा, किसी ने सोचा भी नहीं था। पहले नवाज शरीफ से टकराहट और फिर तालिबान के आगे घुटने टेककर जरदारी ने अपनी कमजोरी का ही परिचय दिया।
इस सियासी जंग में पाक अवाम ही सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता के चलते देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल दौर में पहुंच चुकी है। श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमले के बाद अंतरराष्टï्रीय बिरादरी में पाक की जो फजीहत हुई, यह किसी से छुपी नहीं है। यहां तक कि जरदारी को क्रिकेटरों से माफी मांगनी पड़ी। और अब नवाज शरीफ ने नजरबंदी को तोड़ सड़क पर उतरकर विद्रोह की चिंगारी को हवा दे दी है। सरकारी आदेश को न मानकर उन्होंने यह संदेश तो दे ही दिया है कि देश की अदालत और प्रशासन उनके लिए कोई मायने नहीं रखता है। पूर्व प्रधानमंत्री का यह रूख किसी आनेवाली आशंका की ओर इशारा करता है। नजरबंदी की गिरफ्त में सिर्फ शरीफ बंधु ही नहीं आए, बल्कि पूर्व क्रिकेटर इमरान खान भी इससे बच नहीं सके। पर सरकारी चाबुक का क्या असर पड़ा? हजारों समर्थकों को संबोधित करते हुए नवाज ने साफ कहा कि वे किसी सरकार और अदालत को नहीं मानते। यह खुल्लमखुल्ला विद्रोह आखिर क्यों?
जबसे पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने नवाज बंधुओं को चुनाव लडऩे से अयोग्य ठहराया है, पाकिस्तान में सियासी घटनाक्रम में तेजी से बदलाव आया है। लाहौर और अन्य शहरों में सीधे पुलिस और नवाज समर्थकों के बीच भिड़ंत हो रही है। देश में मीडिया पर बंदिशें लगनी शुरू हो चुकी है। इसलामाबाद में एसएमएस सेवा पर रोक लगा दी गई है। राष्टï्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री गिलानी की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती दिख रही है। मीडिया की खबरों में कहा गया है कि सेना ने ब्रिटेन और अमेरिका के मशविरे के मुताबिक जरदारी को झुकने या हालात सुधारने के लिए २४ घंटे का अल्टीमेटम दे रखा है।
स्वात घाटी और बलूचिस्तान में सरकार की नाकामी किसी से छिपी नहीं है। तालिबान आतंकियों के सामने घुटने टेककर सरकार ने यह जता दिया है कि सुरक्षा के नाम पर देश किस हद तक बदहाल स्थिति में पहुंच चुका है। पर इस सारे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा नुकसान तो पाक अवाम को ही हुआ है। आर्थिक खुशहाली का सपना देखते-देखते उनके बच्चों ने कब बंदूक उठा लिए, किसी को पता ही नहीं चला। और जब आंख खुली तो देश एक बारूद की ढेर पर जा पहुंचा था।