आखिरकार हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कुनबा बढ़ ही गया। लंबी माथापच्ची के बाद 59 मंत्रियों ने शपथ ली। ताजपोशी-1 और ताजपोशी-2 के बाद अब कुल सदस्यों की संख्या 78 तक पहुंच गई है। कानून के मुताबिक मनमोहन परिवार की अधिकतम संख्या 81 हो सकती है। यानी अब यदि पीएम अपने परिवार को बढ़ाना चाहें तो बमुश्किल दो और सदस्य जोड़ सकेंगे। पर लालची नजर और हसरत की कभी भी कोई कमी नहीं रही।
चुनाव परिणाम और ताजपोशी-2 के बीच राजनीतिक रंगमंच पर जिस तरह ड्रामा हुआ, इससे भारतीय राजनीति का तो एक तरह चीरहरण ही हुआ। जनता की सेवा के नाम पर वोट बटोरने वाले ये राजनेता जिस तरह मंत्री पद की ओर लोलुपता से नजर गड़ाए थे, उससे भारतीय लोकतंत्र शर्मशार हुई। करुणानिधि से लेकर ममता ने एक ऐसी गलत परंपरा की शुरुआत की है, जो मनमोहन सिंह के लिए आगे भी मुश्किलें ही पैदा करेगी। 'मैं नहीं तो मेरे बेटे-बेटी ही सही’ के तर्ज पर कई राजनेता अपने वारिस को गद्दी सौंपने में सफल रहे। पर इस तरह की राजनीति 'कॉमन मैन ’ की कितनी भला करेगी, चिंतनीय और शोचनीय है।