हादसा, मौतें और मुआवजा। यह इंसान की नीयत बन चुकी है। हर हादसे के बाद मुआवजे का ऐलान होता है। यह घोषणा वसुधैव कुटुम्बकम की तरह अब भारतीय संस्कृति की पहचान बन चुकी है। पर, यहां भी मुआवजे की राशि कई जातियों में बंटी पड़ी है। यदि आप प्लेन दुर्घटना में अपनी जान गंवाते हैं तो आपके शोकाकुल परिजनों की तो बल्ले-बल्ले। पर, यदि आपकी हैसियत ट्रेन, बस या ऑटो में जान गंवानी की है तो मुआवजे की राशि भी खरीदे गए टिकट की कीमत से तय होती है।
राजधानी, शताब्दी और दुरंतो ट्रेनों में सफर करने वालों की कीमत अलग है। हां, यदि आप जनसाधारण एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में सफर करने वाले यात्री हैं तो रेलवे के मुआवजे में आपको छूट मिलेगी। यही बात, बस, ऑटो और टेंपो से सफर करने में लागू होती है। बस में सफर करते वक्त जान गंवाने पर आपको थोड़े-बहुत पैसे मिल जाएंगे। पर, मोटर साइकिल, ऑटो या टेंपो से मौत को गले लगाने पर विरले ही इसका हकदार बन पाते हैं।
संयोग देखिए कि मुआवजे की राशि भी अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित है। मंगलौर हवाई दुर्घटना में शोकाकुल परिजनों को प्रत्येक मृतक के हिसाब से ७६ लाख रुपए की भारी-भरकम राशि मिलेगी। इसके अलावा प्रधानमंत्री कोष और प्रदेश सरकार की मदद अलग शामिल है। मतलब साफ है कि जिसने हादसे में अपनी जान गंवाई, वे तो भगवान के प्यारे हो गए। पर पैसे का भोग कोई और करेगा। किंतु, ये दुनिया का शाश्वत नियम है कि कमाता कोई और है और भोगता कोई और।
अरे भाई आप इस मुगालते में मत रहिए कि मुआवजे की घोषणा के साथ ही लाखों रुपए का चेक आपके घर पर कोई डाकिया लेकर देगा। अब आपको साबित करना होगा कि मरा हुआ आदमी सचमुच ईश्वर को प्यारा हो गया है। कहीं उसका भूत फिर से जिंदा न हो जाए, इसके लिए सरकारी बाबूओं को कोई पुख्ता सबूत देना होगा। फिर शुरू होगा लालफीताशाही का कुचक्र। इसमें आप ऐसे पिसेंगे कि मृतक की आत्मा भी कराह उठेगी!
पर, मुआवजों का खेल तो सालों से चलता रहा है। यह आज भी बदस्तूर जारी है। बस राज कपूर की फिल्म ‘कल आज और कल’ की तरह। हां, यहां समय के परिपेक्ष्य में मंच के किरदार जरूर बदल जाते हैं।
1 टिप्पणी:
bahut sahi vivechna ki aapne vartmaan paristhitiyon ki pehle udaseenta fir muaavja fir muavje ke liye bhi pramaan...
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