ये क्या कर रहे हो, जल्दी खबर लगाओ। इसी बीच टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज आ गई। उफ ये भी आफत ही है। टीवी पर भी ब्रेकिंग न्यूज अभी ही आनी थी। पर, ये क्या जेब में कुछ हलचल हो रही है। दिमाग में आया कि छोड़ो यार, मोबाइल की ओर देखा तो बैंड बज जाएगी। पर, दिल माने तो सही। आखिर दिल के आगे दिमाग सरेंडर हुआ। उंगलियां धीरे-धीरे जेब में रखे मोबाइल स्क्रीन को टच कर ही गई।
अरे! स्क्रीन पर मेम साहिबा की तसवीर है। अब तो दिल में चुलबुली सी मच गई। हां, बोलो कैसी हो। मैं तो अभी ऑफिस में हूं। जरा धीरे बोलो, बॉस बगल में बैठे हैं। पर, मेम साहिबा को इससे क्या फर्क पड़ता है। इतना कहते ही मेम साहिबा का पारा गरम हो गया। उधर, बॉस भी गरम हो रहे हैं। उफ, एयर कंडीशन हॉल में भी इतनी गरमी। अब सहन नहीं होता, इस गरमी को बाहर निकालना ही पड़ेगा, नहीं तो एटम ब्लास्ट होना तय है। ओ मेरी जान, जरा सब्र करो मैं बाहर आकर तुमसे बात करता हूं। और इतना कहते ही कदम गेट के बाहर चल पड़े।
कुछ संस्थान काम के नाम पर मोबाइल को साइलेंट पर रखने की तुगलकी फरमान जारी करते हैं। मोबाइल की घंटी बजते ही बॉस गुस्साते हैं, वहीं कॉल रिसीव नहीं करने पर गर्लफ्रैंड धमकी देती है। क्या इन मुश्किलों के हल के लिए हर ऑफिस में एक मोबाइल केबिन होना जरूरी है? अपनी राय जरूर दें।
1 टिप्पणी:
हर ऑफिस में मोबाइल केबिन के साथ-साथ बहुत कुछ जरूरी है...लेकिन मिल नहीं सकता...क्योंकि आज कल के कर्मचारी कामचोर हो गए हैं...अगर उन्हें ऑफिस में मोबाइल केबिन मिल जाएगा तो फिर काम का क्या होगा...पता चलेगा सभी कर्मचारी काम को छोड़कर मोबाइल केबिन में लगे पड़े हैं...कोई गर्ल फ्रेंड के साथ व्यस्त हो जाएगा तो कोई अपनी महबूबा को गाना सुनाता नजर आएगा...अब आप ही बताइए कि ऑफिस में मोबाइल केबिन जरूरी है क्या?
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