पर आज मैं संगीत का एक अलग अहसास सुनाने जा रहा हूँ जिसने इस जादू के प्रति मेरा सारा ख्याल ही बदल दिया। हर बार की तरह गरमी की छुट्टियों में एक बार अपने घर गया था। बचपन से ही मुझे गाना सुनने का बहुत शौक रहा है और मैंने इसे सदा जिन्दा रखने की कोशिश की है। मेरे दालान में दो बैल बंधे हुए थे.
अचानक मैंने देखा कि एक बैल काफी उग्र हो गया और उसने दूसरे बैल को मारना शुरू कर दिया। जब मेरे चाचा उस बैल को बचाने पहुंचे तो उस बैल ने उनपर भी झपट्टा मारा। मेरे चाचा सहम कर पीछे हट गए। पता नहीं क्यों मेरे दिमाग में एक ख्याल आया। मैंने धीरे से रेडियो को बैल के समीप ले गया। उस समय रेडियो में कोई पुराना गाना बज रहा था. बस, सच पूछिये पता नहीं कैसे बैल का गुस्सा छू-मंतर हो गया. मैंने धीरे से उसके गले पर हाथ फेरा. और अब बैल पहले की ही तरह नाद में पुआल चबा रहा था.
एक नन्हें से बच्चे की मुस्कान का हर कोई कायल होता है. कहतें हैं कि दो-तीन साल का बच्चा प्रकृति के मुताबिक हँसता है और प्रकृति के अनुसार रोता है. उसकी निश्छल हँसी हमें अपने बचपन में ले जाती है जहाँ हमने भी कभी मां का पल्लू पकरकर कभी रोया था. कभी जानबूझकर अपने बहनों के साथ झगरा भी किया था ताकि बहन के हिस्से का थोरा सा प्यार मिले. और वह प्यार हमें मिलता था मां की लोरी में. हर कोई उस लोरी पर अपने अधिकार जमाना चाहता था. आख़िर कोई क्यों ना करे. तो ये था लोरी के संगीत का जादू. जिस किसी ने लोक संगीत का स्वाद चखा हो वही उसका सुगंध बता सकता है. हर दिल अजीज और प्यारा सा अहसास है ये.