शनिवार, 12 जुलाई 2008

जब आए मां की याद....

मां बहुत ही प्यारी और अच्छी होती है। मन के अन्दर ढेर सारी ममता को समेटे जब वो हमें अपने हाथों से खिलाती है, तो पूछो ही मत. जिंदगी की सारी खुशियाँ एक पल में मुट्ठी में बंद हो जाती है. सच में मां तो बस मां होती है और इसके आगे लफ्ज भी खामोश हो जाते हैं. शायद किसी ने सच कहा है कि ईश्वर हर प्राणी की देखभाल नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने मां को बनाया.
पता नहीं आज क्यों मां की बहुत याद आ रही है। घर से १२०० किलोमीटर दूर रहना बरी बात नहीं है। पर उससे भी मुश्किल है मां से दूर रहना। जब कभी मां की याद आती है तो उनसे फ़ोन पर बातें जरुर हो जाती है. पर वो प्यार नसीब नहीं हो पाता है, जो उनके हाथ के कोमल स्पर्श से हासिल होता है. जिंदगी यूँ तो मैनें बहुत कुछ खोया और उसके बदले पाया भी बहुत. पर घर से दूर रहकर सब कुछ पाकर भी कुछ खाली-खाली सा लगता है. ऐसा लगता है जमीं के नीचे मैंने आशियाना तो बना लिया पर देवी की प्रतिमा नहीं लगा पाया, जिनकी मैं आराधना कर सकूँ.
करियर और नौकरी को लेकर जिन्दगी इस कदर उलझ गई है की सब कुछ उदास-उदास सा लगता है. या यूँ कहे आँख में आंसू भी गाल भर ढलकर आगे नहीं जाते.इस बेबसी मैंने आंसूं से पूछा आख़िर ऐसा क्यूँ. उसने दर्द भरे शब्दों में जवाब दिया कि आप भी तो दर्द को अपने सीने में दफना कर हर ख्वाहिश को कत्ल कर देते हो. सच में ऐसा क्यूँ होता है कि एक सपना को पाने के लिए आदमी जी-जान से कोशिश करता और जब वह इसे हासिल हो जाती. पर बाद में वही हसीं सपना इसकी कीमत वसूलती है. ऐसा है तो हर इंसान के साथ होता है. मन को समझाने के लिए हम बस आँसू पीकर रह जाते हैं. है न सच.

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे भाई इतने उदास मत हो जाओ, आज घर से दुर क्यो आये हो तुम उसी मां का सपना साकार करने के लिये, हर मां अपने बेटे को फ़लता फ़ुलता देख कर खुश होती हे, वो चाहती हे बेटा तरक्की करे,अगर बेटा मां के सपने पुरे नही कर सकता तो उसे दुख होता हे, तो भाई हिम्मत करो ओर मां को उस के सपने साकार कर के दिखाओ,यही हे उस मां का कर्ज जो तुम उसे थोडा थोडा दे सकते हो

Anwar Qureshi ने कहा…

अच्छा लिखा है आप ने .... ...लिखते रहिये ...