सोमवार, 14 जुलाई 2008

छूआछूत का नया रोग

छूआछूत का रोग सबसे खतरनाक रोग माना जाता है। पर यदि इससे हमारी कोई हित सधता हो तो भला हम भारतीय इससे पीछे नहीं रहते। स्वहित की बात हो और हम इसे अपने लिए नहीं अपनाएं, ये तो हो ही नहीं सकता। वैसे तो हमारे देश में छूआछूत की कई महामारियां मौजूद है. पर हाल के दिनों में जगह झपटने की गंभीर महामारी ने सभी को पीछे छोर दिया है.
ट्रेन हो या बस सीट को लेकर अपने यहाँ हमेशा से नोकझोंक चलती रही है। चाहे आप कितने भद्र पुरूष हों या फ़िर नामी बदमाश। ट्रेन और अन्य जगह आपको अपने सीट के लिए उग्र होना ही परता है. यदि आप सीधे-साधे हैं तो फिर आप अपने सीट से तो हाथ धोकर ही बैठ जाइये. ट्रेन में तो यात्रा करते वक्त रिज़र्व सीट के लिए भी जद्दोजहद करनी परती है. कई बार तो रेलवे टीटी तक फरियाद पहुँचने पर आग्रह अनसुनी हो जाती है.पर इस बार तो हद ही हो गयी.
अब तो ऑफिस में भी जगह के लिए मारामारी शुरू हो गयी. हमारे भाई साहब एक नामी मीडिया ग्रुप में काम करते हैं. वे जिस केबिन में बैठते हैं, उसके ठीक सामने दो लोग अपनी सीट खाली कर दूसरी जगह शिफ्ट कर गए। उनलोगों के खाली किए हुए बमुश्किल कुछ ही मिनट बीते होंगे की हमारे एक सहकर्मी की उसपर नज़र पर गयी।और फिर बस होना क्या था।
ये तीव्र सूचना हमारे बॉस तक पहुँच गयी। और बॉस भी तो मानो इसे लपकने के लिए तैयार थे। उन्होंने हमलोगों को भरोसा दिलाया कि हमलोग चिंता नहीं करें, ये खास जगह हमारी ही होगी। कोई नहीं जानता कि इस चमत्कार को मैं कब हकीक़त में बदल दूंगा. बॉस के इस दिलासे से तो हमलोग फूलकर कुप्पा हो गए. सबके मन में लड्डू फूटने लगे और खुशी का तो ठिकाना ही क्या.
पर ये रोग हमारे यहाँ तक ठीक रहे तो सही, पर जब दुसरे डिपार्टमेन्ट के लोग भी इसपर नज़र गराने लगे तो मानो हलचल मच जाएगी. पर खुदा का शुक्र है की अभी तक किसी की भी इसपर नज़र नहीं परी है और वो जगह है. हाँ तो खुदा के बन्दों खुशी मनाओ कि हम भी इस छूआछूत के शिकार हो गएँ हैं....

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

इस नये हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।