सोमवार, 20 जून 2011

किसने ली निगमानंद की जान!

पहले अन्ना और फिर रामदेव। इन दोनों के अनशन ने मीडिया की खूब सुर्खियां बटोरी। दोनों एक हद तक अपने मिशन को कामयाब बनाने में सफल भी रहे। पर भला ऐसी किस्मत सबकी थोड़े ही होती है।

इसी बीच खबर आई कि 68 दिनों से अनशन पर बैठे साधु निगमानंद ने आखिरकार दम तोड़ दिया। स्वामी निगमानंद गंगा में अवैध खनन के विरोध में अनशन पर थे। पिछले 13 दिनों से वे हरिद्वार स्थित जॉली ग्रांट अस्पताल में भर्ती थे। संयोग देखिए, बाबा रामदेव भी कुछ दिनों पहले उसी अस्पताल में भर्ती थे। पर बाबा के शोरगुल में एक सच्चे साधु की आवाज दब गई। जिंदा रहने पर चर्चा से कोसों दूर रहने वाले स्वामी मौत के बाद सुर्खियों में हैं। हाय रे किस्मत!

सच में यह दुनिया बहुत बेरहम है। जिंदा होने पर भले ही बूढ़े मां-बाप को भरपेट खाना न मिले, पर मरने के बाद बेटा बेतहाशा पैसा लुटाता है। करोड़ों रुपए डकारने वाले घोटालेबाज जब अनशन मंच पर दिखते हैं तो बहुत कोफ्त होती है। समाज की खातिर निगमानंद जैसे न जाने कितने शख्स बिना किसी चर्चा के इस दुनिया से विदा हो जाते हैं। पर इस मुल्क के कथित कर्णधार अरबों रुपए पचाकर भी जेल में मिठाई और खीर का आनंद लेते हैं।

क्या आपको लगता है कि हमारा सिस्टम पूरी तरह करप्शन और घोटालों की वजह से सड़ चुका है। क्या यहां सच्ची आवाज की कोई कद्र नहीं होती? देशहित के लिए लड़ने वाला इंसान नेताओं की कुत्सित राजनीति के व्यूह में यूं ही दम तोड़ देता है?

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