गांव की दुनिया भी बहुत ही निराली होती है। चारों ओर हरे-भरे खेत और चहकती पंछियों की उन्मुक्त उरान से मन बाग़-बाग़ हो जाता है। मानो ईश्वर ने अपनी सारी कलाबाजी और गुण उसमें समेट दिया हो. जब भी शहर की भागदौर से मन टूटता है तो मन बरबस ही गांव की और खींचा चला जाता है.
आंखों के सामने डरवाजे पर बंधे बैल और उसके गले में बंधी घंटियों की आवाज मुझे अपनी और खींचती है। घंटियों की आवाज में कुछ ऐसा आकर्षण होता है जो आपको अपने पास बुलाती है। उस पल कुछ कहना चाहती है आपसे. सांसों में हर पल उसकी जम्हाई और कभी-कभी सर हिलाकर गुस्साना कुछ और ही कहता है. दरवाजे पर भूसी का ढेर और कभी-कभी बैल द्वारा रस्सी तोड़कर भूसी और अन्य चीजों पर झपटना एक अलग ही आनंद देता है. शायद उसकी ये हरकत हमें अपनी बचपन की याद दिलाती है. कुछ वो बचपन जिसे हमलोगों ने पैसे और नौकरी के चक्कर में न जाने कहाँ कैद कर रखा है.
कहावत है की हर इन्सान के पास एक प्यारा और नाजुक सा बच्चे वाला दिल होता है. पर इन्सान उम्र बढने के साथ-साथ उस दिल को भी भूल जाता है. हममें से हर कोई ये मानता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए. पर कुछ पाने की तीव्र लालसा हमें उस आनंद से दूर ले जाती है, जो हमारा और सिर्फ़ हमारा है. बचपन में रोते भी हैं और हँसते भी हैं. पर उस आँसू में भी यादों का हमसफ़र छुपा रहता है. जो प्यार का मीठा अहसास कराता है. पर जवानी में तो रोने पर भी आँसू नहीं निकलते हैं. हाँ गुस्सा जरुर आता है. और उस गुस्से में हम किसी की जान लेने से भी नहीं गुरेज करते. आख़िर ऐसा क्यों होता है. जब हर शख्स को इंसान ने ख़ूबसूरत दिल और मनमोहक जिस्म दिया है तो ये वैर क्यों? आख़िर क्यों पल भर में हम ईश्वर की खूबसूरत दुनिया को बरबाद करने पर तूल जाते हैं. यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर किसी को देना है.
3 टिप्पणियां:
Ram Bhai. Am first time at your blog, but, impressed by emotional touch in your writings.
Keep on blogging and sharing your thoughts.
bhut sundar. jari rhe.
क्या लिखते हो राम भाई. लिखते रहो बढिया लिख रहे हो.
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