गुरुवार, 11 जून 2009

अधूरी रह गई हबीब की कहानी


जन्म और मौत दुनिया का शाश्वत नियम है। पर अपना जब कोई हमसे दूर हो जाए तो दिल बिलखता है। दिल रोता है और अनायास ही वह न जाने क्यों परमपिता पर भी कुपित हो जाता है। ऐसा ही कुछ तनवीर हबीब के चले जाने से हो रहा है। तनवीर साहब को गुजरे कई दिन हो गए, पर ऐसा लगता कि रंगमंच का मसीहा हमारे बीच ही मौजूद है। खिलखिलाते और सौम्य चेहरे के साथ कुछ कहने की कोशिश कर रहा है.........।


एक ऐसा शख्स जिसने रंगमंच की दुनिया में खुद को समर्पित कर दिया। इंद्रधनुषी रंग के साथ हर रंग में एक कल्पना को पर्दे पर साकार किया। शायद ईश्वर को हमलोगों की अपेक्षा हबीब साहब की ज्यादा जरूरत थी, इसलिए उन्हें अपने पास बुला लिया। यह भी हो सकता है कि जर्जर हो चुके इस पेंटिंग में वे कोई नया रंग डालना चाह रहे हों और हबीब से बेहतर पेंटिंग उन्हें कहीं नहीं मिली हो। पर कुछ भी हो 'ब्लैक एंड व्हाइट ’ का यह सितारा काला स्याह में तब्दील हो चुका है।


रायपुर की गलियों से निकल कर अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर छा कर छत्तीसगढ़ी नाटक और भारतीय रंगमंच को नई पहचान दिलाने वाले हबीब तनवीर अपनी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को शब्दों का रूप देना चाहते थे। इसी लिए उन्होंने सफरनामा लिखने का फैसला किया। अपनी आत्मकथा को अपनी ही भाषा में लिखने की कोशिश में लगे तनवीर उसे पूरा नहीं कर पाए।


हबीब तनवीर की सफरनामा को तीन खंडों में लिखने की योजना थी। पहला खंड पूरा हो चुका था, जिसमें उनके शुरुआती संघर्ष से लेकर रंगमंच को नया रूप देने के लिए की गई कोशिशों का ब्योरा दर्ज है। दूसरे खंड में वह अपनी प्रेम कहानी से लेकर अनछुए पहलुओं को समेटना चाहते थे और तीसरे खंड में उन चित्रों का संग्रह होता जो हबीब तनवीर के होने का अर्थ बताते। पहला खंड तो वह पूरा कर चुके थे और दूसरे खंड में अपनी प्रेमिका से पत्नी बनी मोनिका मिश्रा से जुड़ी यादों को गूथने में लगे थे। तभी उन पर बीमारी का हमला हुआ और उनकी जिंदगी की कहानी यहीं पर आकर ठहर गई। और अचानक एक हंसता-खिलखिलाता पुष्प मुरझा गया........।

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