मंगलवार, 23 जून 2009

नौकरी मिली है, मिठाई खाइए

लीजिए, मिठाई खाइए। क्यों शादी तय हुई क्या? नहीं सर, ट्रेनी बना हूं। ...तो दिल ने कहा कि क्यों न सभी का मुंह मीठा कराया जाए। और फिर आपके सामने पेश है लजीज और ताजा-ताजा गुलाबजामुन।


मिठाई देखते ही हर किसी के पेट में चूहे उछलने लगे। यह चूहा कभी इधर फुदकता तो कभी उधर। थोड़ा भी सब्र करने को मान ही नहीं रहा। पर शुरू करें तो कैसे करें। बॉस किसी से बातचीत में मशगूल हैं और दिल है कि मानता नहीं। ओह नो! अब देरी बर्दाश्त नहीं हो रही.....। हिम्मत जुटाई और जा धमका बॉस के आगे। मन में थोड़ी हिचकिचाहट जरूर थी। पर यकीन था कि गुलाबजामुन अपना रंग जरूर जमाएगा (अरे भाई, शकुंतलम से ली है तो इसमें सौंदर्य और प्रेम की मिठास तो होगी ही)। बॉस ने पहली मिठाई ली और और फिर देखते-देखते आधा डब्बा खत्म।


किसी ने आवाज दी, अरे भाई सब्र करो। पहले लंच कर लेते हैं और फिर मुंह मीठा करेंगे। बात तो सही है चटपटा खाना के बाद पेट देवता को मिठाई मिल जाए तो कहना ही क्या...। अभी भी डब्बे में कुछ गुलाबजामुन बचे हैं। हर किसी के दिमाग में एक ही बात घूम रही है कि आखिर कितने बचे होंगे गुलाबजामुन। इधर-उधर नजर घुमाई। थैंक्स गॉड, केवल आठ हैं। हिसाब लगाया तो किलो के हिसाब से तो कम से कम दस मिठाई तो होनी ही चाहिए (आज मालूम हुआ कि हिसाब जानने की अहमियत क्या होती है नहीं तो पत्रकारिता में आने के बाद गिनती भी भूलने लगा था...)।


आखिर सब्र का फल मीठा होता है और यदि इसमें गुलाबजामुन का रस घुला हो तो फिर कहना ही क्या। मिठाई खाने का दूसरा दौर। हर किसी के आगे एक और गुलाबजामुन। हाथ और मुंह का मिलन होते ही चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान। तभी किसी ने फुसफुसाते हुए कहा थैंक्यू...।

3 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

आज तो सबसे बड़ी खुशी नौकरी ही होती है,
सुंदर लेख,बधाई हो.

Udan Tashtari ने कहा…

बधाई हो जी!!

shantanu ने कहा…

भइया मुझे तो मिठाई बहुत पसंद है. फिर चाहे वो सफलता की हो या असफलता की. बढ़िया लेख के लिए बधाई